भारत के छत्रपति संभाजीनगर (पहले औरंगाबाद के नाम से जाना जाता था) शहर से होकर बहती हुई खाम नदी वर्षा ऋतु में उफान पर होती है जबकि वहीं गर्मियों में एक पतली धारा में सिमट जाती है। कुछ वर्षों पहले तक खाम नदी पानी की कमी से जूझने वाले इस शहर की जरूरत कुओं और साफ पानी का संचय करनेवाले प्राचीन नहरों की एक उन्नत प्रणाली के माध्यम से पूरा करती थी। लेकिन पिछले कुछ दशकों में जनसंख्या वृद्धि, कचरे के कुप्रबंधन और अनियमित रेत खनन ने नदी को एक बड़े कचरे के ढेर और सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए खतरे में बदल दिया है।
"मेरे बचपन के दिनों में जब मैं यहाँ आता था तो खाम नदी का पानी इतना साफ था कि हम उसे पीते थे, "असदुल्लाह खान ने कहा। खान यहां के बहुत पुराने निवासी हैं और इस वक्त छत्रपति संभाजीनगर नगर निगम में बतौर विशेष अधिकारी खाम नदी के जीर्णोद्धार के प्रयास का नेतृत्व कर रहे हैं। वे कहते हैं, "मैं चाहता हूं कि औरंगाबाद के लोगों को वही साफ और शुद्ध पानी मिले जो मैंने मेरे बचपन में देखा था।"
शहरी मौसमी नदियों में विरासती कचरे की समस्या छत्रपति संभाजीनगर तक ही सीमित नहीं है: भारत में 21% नगरपालिका कचरा बिना किसी प्रक्रिया के फेंका जाता है। प्रदूषित पानी लोगों, मवेशियों और वन्यजीवों के स्वास्थ्य को प्रभावित करता है।
छत्रपति संभाजीनगर में एक पर्यावरणीय कंसल्टिंग फर्म इकोसत्त्वा की सह-संस्थापक नताशा ज़रीन कहती हैं, "कोई यहां आना नहीं चाहता था। दुर्गन्ध और गंदगी इतनी भयानक थी कि आप पुल पर एक पल भी रुक नहीं सकते थे। नदी हमारे सबसे बुरे पहलु का प्रतिबिंब बन गई थी। इसमें हमें हमारा कचरा और सीवेज, हमारी लापरवाही और शासन की लापरवाही साफ़ तौर से दिखती है। " कई निवासी नदी के अस्तित्व से अनजान थे और इसे एक सीवेज का नाला समझते थे।
साल 2020 तक खाम नदी ख़त्म होने की कगार पर पहुंच गई थी। ऐसे में सामुदायिक और शहर-नेतृत्व वाले समूहों के एक गठबंधन ने खाम को एक नदी के रूप में पुनर्जीवित करने और अंततः शहर के एक प्रमुख घटक के रूप में सांस्कृतिक पुनरुत्थान की दिशा में ले जाने के लिए एक बहुविध उद्धार पहल शुरू की। पहले के प्रदूषित स्थान अब पारिस्थितिक पार्क (इकोपार्क) में बदल गए हैं जो अब सामुदायिक स्थान और प्राकृतिक आवास के रूप में लोगों की सेवा कर रहे हैं।
शहरी नदियों के संवहनीय प्रबंधन पर केंद्रित रिवर सिटीज अलायन्स के माध्यम से खाम अब भारत की पहली मौसमी नदी बन गई है जिसके पास शहरी नदी प्रबंधन योजना है। साल 2020 के बाद से 54 एकड़ नदी तटीय क्षेत्र को पुनर्स्थापित किया गया है और वहीं 25,000 घरों ने नई कचरा संग्रहण सेवा का लाभ उठाना शुरू कर दिया है। दस लाख से अधिक लोग नदी तट पर शैक्षिक और सामुदायिक कार्यक्रमों में भाग ले चुके हैं। इन सबके अतिरिक्त सबसे अहम बात, पिछले दो वर्षों में नदी में बाढ़ नहीं आई है।
एक समग्र सफाई की शुरुआत
खाम नदी की सफाई परियोजना की शुरुआत वरोक फाउंडेशन की एक परिकल्पना से हुई। उन्होंने 2020 में इकोसत्त्वा से डेटा संग्रह और शोध कार्य कराने के लिए संपर्क किया। इकोसत्त्वा की सह-संस्थापक गौरी मिराशी बताती हैं, "हमने पहले छह महीने का अध्ययन किया ताकि यह समझ सकें कि नदी को क्या चाहिए। कई ऑर्थोफोटो सर्वेक्षणों के बाद यह समझते हुए कि कचरा कहां से आ रहा है, सीवेज कहां से आ रहा है, नदी और कौन सी चुनौतियां झेल रही है, हमने एक रणनीति बनाई।"
टीम ने खान के नेतृत्व में एक शहरी विशेष टास्कफोर्स के साथ पहले कचरा सफाई और गाद निकालने पर ध्यान केंद्रित किया। इससे नदी का प्रवाह तेज हो गया और मानसून के दौरान बाढ़ प्रतिरोध में सुधार हुआ। पहल के अंतर्गत नदी के किनारे देशी पौधों और पेड़ों को लगाने के लिए भी सहायता प्रदान की गयी ताकि पारिस्थितिकी तंत्र को पुनर्जीवित किया जा सके, छाया प्रदान की जा सके और एक देशी वृक्षों की गैलरी बनाई जा सके जहां पर्यटक प्रत्येक भारतीय राज्य के पेड़ों के बारे में सीख सकें।
यह सुधार देशी वनस्पतियों और जीवों के लिए एक वरदान साबित हुआ और इससे स्थानीय पारिस्थितिकी को पुनर्जीवित करने में मदद हुई है। पेशे से मैकेनिकल इंजीनियर और यहां के निवासी अशोक जैन पक्षी देखने और फोटोग्राफी के शौक़ीन हैं। उन्होंने शहर और रिवरसाइड इकोपार्क में 35 विभिन्न पक्षी प्रजातियों की तस्वीरें ली हैं जो शहर के पश्चिमी किनारे पर स्थित ऐतिहासिक कैंटोनमेंट क्षेत्र में स्थित है।
"मैं एक साल पहले यहां आया था और मुझे इस जगह से प्यार हो गया है," जैन ने बताया। वे कहते हैं, "मैं यहां हर दिन आता हूं लेकिन कभी ऊबता नहीं हूं। मुझे हर दिन खुशी का अहसास होता है।"
कचरा प्रबंधन की पुनर्कल्पना
खाम नदी के साफ होने के बाद टीम को यह तय करना था कि प्रदूषण और कचरे से नदी को नुकसान को कैसे रोका जाए। दो तत्कालीन प्राथमिकताएं स्पष्ट हो गईं: अवैध डंपिंग को रोकना और नदी के किनारे के इलाकों को शहर की औपचारिक स्वच्छता प्रणाली से जोड़ना। शहर की नगर निगम ने नदी को साफ रखने के लिए बुनियादी ढांचे में सुधारों को लागू किया। जैसे पुलों के दोनों तरफ लोहे की जालियां ताकि डंपिंग को रोका जा सके, कचरा जाल ताकि कचरा नदी में नीचे की ओर न जा सके, और घरों को सीवेज पाइपों से जोड़ना ताकि मल एंव गंदे पानी पर ट्रीटमेंट हो सके।
समानता और सामुदायिक भागीदारी पर ध्यान केंद्रित करते हुए इकोसत्त्वा ने 2021 में उन्नति वेस्ट मैनेजमेंट सर्विसेज विकसित किया जो एक वाणिज्यिक कचरा प्रबंधन सेवा है। यह सफाई साथियों या कचरा बीनने वालों को रोजगार देती है और उन्हें सशक्त बनाती है। इसका उद्देश्य कचरा प्रबंधन में सुधार करना और डंपिंग के आसपास सांस्कृतिक मानदंडों में बदलाव करना था। सफाई साथी कई भारतीय शहरों में पारंपरिक कचरा प्रबंधन का मुख्य आधार होते हैं। लेकिन अनौपचारिक कार्यकर्ता होने के कारण सफाई साथी अक्सर सामाजिक बहिष्कार, स्वास्थ्य जोखिम और आय की अनिश्चितता के शिकार होते हैं।
इस पहल के माध्यम से सफाई साथियों, जिनमें से कई महिलाएँ हैं, ने पेशेवर प्रशिक्षण प्राप्त किया है और अब वे औपचारिक रूप से नगर निगम के लिए काम करते हैं। अब उन्हें एक सुरक्षित आय और बढ़ी हुई सामाजिक पहचान प्राप्त होती है। नगर पालिका की नौकरियों में 600 से अधिक अतिरिक्त स्वच्छता कर्मचारियों को भी एकीकृत किया गया है जिनकी सहायता से खाम में फेकें जानेवाले कचरे की मात्रा कम ही नहीं हुई बल्कि रीसायकल प्रथाओं के बारे में जनता की जागरूकता में वृद्धि हुई है। और मौसमी नदियों को साफ रखने से जुड़े सांस्कृतिक मूल्यों को बहाल करने में मदद मिली है।
सांस्कृतिक संबंध को पुनर्जीवित करना
सुधार किए गए कचरा प्रबंधन के साथ, इकोसत्त्वा और नगरपालिका टीम ने 110 स्थानों की पहचान की जहां से ठोस कचरा नदी में फेंका जाता है और उन्हें साफ किया। उन्होंने इनमें से कई स्थलों को पॉकेट पार्क में भी परिवर्तित किया जो देशी पौधों और समुदाय की कला का उत्सव मनाते हैं। नदी के तट के साथ ५ किलोमीटर तक फैले हुए रिवरसाइड इकोपार्क में तीन पुनर्जीवित तालाब, एक सुरक्षित चलने का मार्ग और रीसाइकल्ड टायर से बना एक एम्फीथिएटर है। टीम ने जब भी संभव हुआ, सामग्री का पुन: उपयोग किया और परियोजना के हर चरण में स्थानीय निवासियों को केंद्र में रखा गया।
इकोसत्त्वा की ज़रीन कहती हैं, "यह वास्तव में एक समुदाय, नगरपालिका नेतृत्व, सभी का एक साथ आना है ताकि हम जिसे तबाह कर चुके थे उसे ठीक कर सकें। मुझे लगता है कि इस परियोजना ने लोगों, शहर और इस सुंदर जगह से सबसे बेहतरीन बात को बाहर लाया है।"
सफाई के पहल ने एक इरादे के तहत खाम नदी के साथ सांस्कृतिक संबंधों के पुनरुत्थान का प्रयास किया है। एक स्थानीय बैंड का "खाम सॉन्ग" नदी सफाई पहल का गीत बन गया है और निवासी नदी को ‘आपली खाम’ या हमारी खाम कहकर स्नेह से बुलाते हैं। स्कूली बच्चे नियमित रूप से पक्षी देखने के दौरे और जैव विविधता की सैर पर जाते हैं और महिला समूहों ने कार्यशालाएं और सामुदायिक गतिविधियां आयोजित की हैं।
करीब 400 साल पुरानी नहर प्रणाली से ऐतिहासिक रूप से एक पवित्र जीवनरेखा के रूप में जानी जानेवाली खाम नदी अब स्थानीय नदी पुनर्स्थापन परियोजनाओं के लिए बढ़ती महत्वाकांक्षा के केंद्र में है। यह अब नागरिकों को नदी को एक जीवित इकाई के रूप में मान्यता देने के लिए प्रेरित कर रही है जो समुदाय के सांस्कृतिक ताने-बाने के साथ जुड़ी हुई है।
भारतीय नदियों के लिए एक नया उदाहरण
खाम नदी जीर्णोद्धार पहल यह दिखाता है कि कैसे जलमार्ग प्रबंधन के लिए एक सामाजिक-पर्यावरणीय दृष्टिकोण शहरों को बदल सकता है और जीवन में सुधार कर सकता है।
इस प्रयास ने खाम नदी के साथ पर्यावरणीय दुर्दशा और बाढ़ के जोखिम को नाटकीय रूप से कम कर दिया है। हिम से निकलनेवाली गंगा से नहीं जुड़े होने के बावजूद खाम भारत की पहली नदी है जिसकी शहरी नदी प्रबंधन योजना बनी हुई है। खाम ने छोटे पैमाने और मौसमी नदियों के लिए एक औपचारिक प्रबंधन ढांचा बनाने को लेकर मिसाल कायम की है। ये योजनाएँ नगरपालिका सीमाओं से परे क्षेत्रीय बेसिन-स्तर पर अन्य जल निकायों तक सफाई कार्य का विस्तार भी करती हैं।
अपने युवावस्था से खाम नदी को याद करने वाले खान के लिए पुनर्जीवित करने की पहल के नेतृत्व ने एक नई आशा और उद्देश्य प्रदान किया है। "मुझे गर्व है क्योंकि यह पर्यावरणीय कार्य है और इसे करना मेरी आत्मा को संतुष्ट करता है।, "खान का कहना है।
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जेन शिन डब्ल्यूआरआई रॉस सेंटर फॉर सस्टेनेबल सिटीज़ में शहरी परिवर्तन की प्रबंधक हैं। एना कुस्टार डब्ल्यूआरआई रॉस सेंटर फॉर सस्टेनेबल सिटीज़ में एक शोध विश्लेषक हैं। सभी विचार व्यक्तिगत हैं।